हरसिल घाटी, कुमाऊँ हिमालय, उत्तराखंड, में मई माह में यात्रा का अनुभव, कुमाऊँ-गढ़वाल हिमालय की कहानियाँ
सबसे तेज़ माध्यम देहरादून से हरसिल के लिए एक हेलिकॉप्टर होता, लेकिन सड़क किनारे की दुकानों से चाय का मज़ा ना मिल पाता| इनोवा में ड्राइविंग शांत और सस्ती थी!
हमारे पास धीमी गति में जीवन जीने का समय था| सूर्यास्त अनुभव करने का समय था| तापमान को धीरे-धीरे कम होता महसूस करने और मुस्कुराने का… प्यारी बातें करने का समय था|
हिमालय में हम छः मित्र, मानो चहचहाते पक्षियों की तरह अलमस्त रहे| ‘स्थावराणाम हिमालय’, जैसा कि श्रीकृष्ण, गीता में कहते हैं, ‘स्थिरता में, मैं हिमालय हूं', हम भी जीवन में स्थिरता एवं नई संभावनाओं की ऊर्जा स्वयं में अनुभव कर रहे थे| यह निश्चित रूप से अद्भुत था| स्थिरता एवं विस्तार, साथ-साथ!
धनौल्टी से उत्तरकाशी तक की यात्रा सुंदर थी। यह उत्तरकाशी का मेरा पहला अनुभव था। गंगा जी के किनारे बस्ती, ऐसा लगा जैसे ऋषिकेश है। आश्रमों के ठीक बगल में नदी थी। विशाल हिमालय, जल्दबाजी में बहती गंगा जी का शांत साक्षी था|
मई माह में, अनगिनत नीले जैकारांडा वृक्ष के फूलों ने उत्तरकाशी में आकाश का नील-आभास बढ़ा दिया| मानों आकाश का भाग जमीन पर हो। हम, दोपहर के भोजन के लिए एक स्थानीय परिवार द्वारा चलाए जा रहे सड़क किनारे भोजनालय में रुक गए।
हम सुबह नौ बजे धनौल्टी से निकले थे और शाम चार बजे तक हरसिल पहुंच गये। शानदार शाम के दृश्यों को देखने के लिए समय से पहुँच गये| हर शाम यहाँ विशेष रही| जीएमवीएन होटल भागीरथी गंगा जी के तट पर एक आरामदायक जगह थी। आइरिस के फूल और पुदीना यहां बहुतायत में लगे हुये थे। यहाँ कर्मचारी भी तृप्त मुस्कुराहट के साथ कड़ी मेहनत करते हैं। बीएसएनएल को छोड़कर कोई फोन कनेक्टिविटी नहीं थी और यह एक राहत की बात थी। फोन अब सिर्फ एक कैमरा था, कोई जल्दी नहीं रही सोशल मीडिया पर खबरें बताने की! समय जैसे बढ़ गया हो! इस नीले, सफ़ेद, बर्फ, आकाश, पानी और पेड़ों से ढके वातावरण में विश्राम की छांव थी| मन एवं इंद्रियों ने ध्यानस्थ हो, आराम किया|
हम भूटिया गाँव, विल्सन कॉटेज, श्री लक्ष्मी-नारायण मंदिर भागीरथी गंगा और जालंधर गाड, सेब के बाग, आलू के खेत और पहाड़ी पीपल के पेड़ देख कर प्रसन्न हुये।
नियमित अंतराल पर नदी पार, हेलिकॉप्टर उतरते और उड़ान भरते रहते| हरसिल से सिर्फ 24 किमी दूर गंगोत्री है, जहां के लिए हेलीकाप्टर से यात्री आते हैं, देहरादून से| हम भी गंगोत्री और मुखबा दर्शन के लिए गए| वह कहानी किसी और दिन!
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